स्वामी मैत्रेयानंद जी की देशना, उनके संपर्क में आने वालों के हृदय को कहीं गहरे छूकर, साधकों के सांसारिक और आध्यात्मिक विकास में सहायक बनकर, जीवन को पूर्ण रूप से जीने के लिए प्रेरित करती है।
स्वामी जी का मानना है कि सच्चा ध्यान किया नहीं जा सकता, ध्यान स्वत: घटने वाली घटना है। ध्यान की कोई भी विधि अपने- आप में ध्यान नहीं है। ध्यान की अलग-अलग विधियों का प्रयोग किया जाता रहा है ताकि मन सब जगहों से हटकर एक जगह पर टिक जाए और सहज ध्यान घटने की परिस्थिति निर्मित हो पाए। मन का केंद्रीकरण ध्यान नहीं बल्कि ध्यान घटने की प्रक्रिया का एक हिस्सा मात्र है । ध्यान एक ऐसी स्थिति है जिसमें “घटना और जानना” एक-साथ और “प्रयासरहित” होता है । आध्यात्मिक ध्यान, ज्ञान आदि का उद्देश्य जीवन को सरल और सहज रूप से जीने की कला सीखना है ताकि हम अपने होने को, बिना किसी संघर्ष के, पूर्ण आनंद से जी पाएं।
स्वामी जी की देशना के अनुसार सभी प्रकार की जटिलताओं और तनावों से ऊपर उठकर जीवन के हर पहलू को पूर्ण रूप से जीना ही सच्चा ध्यान है। देशना और ध्यान-विधियों के प्रयोग से जैसे-जैसे हमारे भीतर सरलता और सहजता का विस्तार होने लगता है, वैसे वैसे बाहर की सभी क्रियाएं भी सरलता और सहजता से घटने लगती हैं और हम उन क्रियायों में लिप्त न होकर, उन्हें साक्षी भाव से घटता हुआ देखने लगते हैं।